लेखनी कहानी -03-Jul-2023# तुम्हें आना ही था (भाग:-11)# कहानीकार प्रतियोगिता के लिए
गतांक से आगे:-
इतना कहकर राज चुप हो गया।तभी उसे रात वाली बात याद आ गई उसने भूषण प्रसाद से कहा,
"अंकल मैं सच कह रहा था ,रात को वो लड़की वास्तव में थी ।मैंने उसका हाथ पकड़ा था ।अगर वो कोई आत्मा होती तो मैं उसे कैसे छू पाता।"
भूषण प्रसाद भी सोचते हुए बोले ,"मैं भी यही सोच रहा था कि कोई इतनी बार दिखाई दे तो वो आत्मा नहीं हो सकती । चलों राज तुम फ्रेश हो जाओ मैं भी नहा धोकर तैयार हो जाता हूं । नाश्ते पर आगे का प्रोग्राम बनायेंगे कि आगे क्या करना है।"
"जी बहुत अच्छा। मैं अभी तैयार होकर आता हूं।" यह कहकर राज अपने कमरे में चला गया।
आधे घंटे बाद दोनों डाइनिंग टेबल पर बैठे नाश्ता कर रहे थे। नाश्ता खत्म करके राज बोला,"बोलों अंकल आज क्या करना है ?"
"राज आज तुम अपने वो स्कूल वाले शास्त्री जी का पता लगाओ।ताकि हम तोइन ताड़पत्रों में क्या लिखा है ये जान पायें। बाकि मैं आज एक बार फिर से "लाल हवेली" जाता हूं शायद कोई और सुराग हाथ लगे जाए क्योंकि आज महल के खंडहरों की खुदाई का काम वर्कर्स कम होने के कारण रुका हुआ है।"
"जी अंकल।"
दोनों अपने अपने काम पर जाने के लिए उठ खड़े हुए तो नयना एकदम से बिफर पड़ी,
"क्या बात है पापा? मैं देख रही हूं आप मुझे से बहुत सी बातें छुपाने लगे हैं ।पहले बहुत बार आप मुझे अपनी साइट पर भी ले जाते थे लेकिन मैं देख रही हूं जब से राज आया है शहर से तब से आप मुझे कुछ नहीं बताते ।बस मुझे यहीं पता है कि महल के तहखाने में कुछ अजीब सा निकला है जिसे देखकर आप परेशान हो गये थे।"
"नहीं बिटिया ऐसी कोई बात नहीं है।हम तुम से कुछ नहीं छिपा रहे। बस वो राज आया हुआ है ना यहां पर तो बस उसे अपना काम दिखाने ले जाता हूं।"
नयना ने हंसते हुए कहा,"ओह हो पापा मैं तो मज़ाक कर रही थी ।वैसे भी मेरे एग्जाम चल रहे हैं नहीं तो ये मेरा ज्यादा दिमाग खाता अच्छा है आप इसे अपने साथ ले जाते हो।"
"अच्छा मोटी, तुम में दिमाग भी है ? मुझे तो आज ही पता चला।" अब बारी राज की थी ऐसा हो सकता है कि वो नयना को किसी बात पर ना छेड़े।
नयना ने राज की तरफ मुंह चिढ़ा दिया तो दोनों खिलखिला कर हंस पड़े।
आज राज दस बजे ही अपनी गाड़ी से निकल गया ।पहले वह तराई के इलाके में पड़ने वाले अपने विद्यालय में गया । बड़ा ही जीर्ण शीर्ण अवस्था में हो गया था विद्यालय।उसे देखकर राज के मन में बड़ा दुःख हुआ आखिर बचपन गुजरा था उसका इस विद्यालय में । दसवीं तक वो यही पढ़ा था बाद में आगे की पढ़ाई करने वो शहर और विदेश गया था।उसने मन ही मन सोचा कि अंकल से कहकर एक चेक विद्यालय के नाम कटवाऊंगा आखिरकार इतना पैसा है कुछ पुण्य हो जाएगा।
वह विद्यालय के अंदर गया तो मुख्याध्यापक तो वहीं थे पर स्टाफ सारा बदल चुका था।वह अंदर आफिस में गया और नमस्कार करके बैठ गया।अपना परिचय देते हुए उसने शास्त्री जी के विषय में पूछा।
वहां से पता चला कि शास्त्री जी का एक ही बेटा था जो एक एक्सीडेंट में भगवान को प्यारा हो गया था तब से सब कुछ छोड़कर वो कच्ची बस्ती में रहने चले गये थे ।वहीं वो वहां के गरीब बच्चों को मुफ्त में पढ़ाते हैं।
वहां से निकल कर राज की गाड़ी कच्ची बस्ती की ओर चल दी।जैसे ही वो वहां पहुंचा उसे दूर से ही एक पेड़ के नीचे काला बोर्ड लगाकर एक कुर्सी पर शास्त्री जी दिखाई दिये।उनके आगे बहुत से छोटे-छोटे बच्चे बैठे अपनी पढ़ाई पढ रहे थे ।वह दूर से खड़ा होकर सब देख रहा था । शास्त्री जी पहले से बहुत बुढ़े हो चले थे ।कुछ तो बेटे का ग़म और कुछ उम्र का तकाजा झुकी कमर और झुक गई थी।हाथ पांव कांपने लगे थे।।वह उनके पास गया और उनके चरण स्पर्श किये।
शास्त्री जी ने प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा।
राज ने अपना परिचय स्वयं ही दे दिया," मैं राज बड़ी कोठी वालों का लड़का। मास्टर जी आप को याद है मैं सबसे ज्यादा शरारती था क्लास में और जब आप हमें कोई ऐतिहासिक, रहस्य रोमांच से भरपूर कहानी सुनाते थे तो सबसे आगे वाले बैंच पर बैठने वाला मैं ही होता था। मुझे हमेशा से भूत , रहस्यमय बातें आकर्षित करती थी और अब भी करती है।"
"अच्छा …. अच्छा मैं समझ गया ।तुम वही राज हो ना जिसके पिता बचपन में ही गुजर गये थे फिर भूषण प्रसाद जी ने तुम्हें बड़ा किया बिल्कुल अपने बच्चे की तरह।तुम तो विदेश चले गये थे ना?"
"जी ,आप के आशीर्वाद से डाक्टर बन गया हूं ।शहर में प्रेक्टिस करता हूं । यहां कुछ दिनों के लिए आया हुआ था ।पिता जी के कुछ सरकारी दस्तावेज थे उनपर हस्ताक्षर करने थे।"
"अच्छा है बेटा आते रहा करो । भूषण प्रसाद जी को मेरा प्रणाम कहना।और कोई विशेष काम था मुझे से?"
"जी मास्टर जी ।कुछ दुविधा में पड़ गया हूं आप की कुछ मदद चाहिए थी ।"
"हां हां बोलो बेटा मैं तुम्हारी क्या मदद कर सकता हूं।"
"मास्टर जी इसके लिए आप को मेरी कोठी पर चलना पड़ेगा क्योंकि अंकल ही आप को बतायेंगे वो काम ।"
ठीक है बेटा ।अभी मैं बच्चों को पढ़ा रहा हूं ।शाम को मैं स्वयं ही आ जाऊंगा तुम्हारी कोठी पर ।"
राज एक बार फिर से चरण स्पर्श करके उठकर गाड़ी में बैठ गया।
वह घर की ओर ही जा रहा था ।अभी थोड़ी ही दूर गया था कि भूषण प्रसाद का फोन उसके मोबाइल पर आया।उसे अचानक से याद आया कि अंकल तो "लाल हवेली" गये थे । जरूर कोई बात हो गई होगी।उसने फोन उठाया और हेलो बोला ही था कि दूसरी तरफ से मिस्टर प्रसाद का घबराया हुआ सा स्वर सुनाई दिया ,
"राज तुम कहां पर हो। जल्दी से लाल हवेली पहुंचो यहां कुछ मिला है।"
राज ने तुरंत गाड़ी रोक दी और यू-टर्न लेकर गाड़ी का रुख लाल हवेली की ओर कर दिया।
कहानी अभी जारी है……….
KALPANA SINHA
12-Aug-2023 07:16 AM
Nice part
Reply
Milind salve
03-Aug-2023 03:14 AM
Nice
Reply